Naa Kiya Hari Bhajan Janam Vyarth Kho Diya Amritvani Bhajan

ना किया हरी भजन जनम व्यर्थ खो दिया
हरी से नहीं लगन के जनम व्यर्थ खो दिया
ना किया हरी भजन के
जनम व्यर्थ खो दिया
हरी से नहीं लगन के
जनम व्यर्थ खो दिया
ना किया हरी भजन
जनम व्यर्थ खो दिया
पैदा हुआ तो आयी बहार
ख़ुशी सभी को हुए अपर
उलझा जगत के धंधो में
और हरी को दिया बिसार
जग में हुआ मगन के जनम व्यर्थ खो दिया
ना किया हरी भजन जनम व्यर्थ खो दिया
मुझ मनाता हुआ जवान
फिर भटकता यहाँ वह
भले बुरे सब कर्मा किया
किया होश में हर एक नशा
जल्दी हुआ पतन के जनम व्यर्थ खो दिया
ना किया हरी भजन जनम व्यर्थ खो दिया
हुआ धनि तो धन का गुरुर
रूप मिला तो तन्न का गुरुर
अभिमान में फूल गया
मैं ही मैं रह गयी हज़ूर
सब कुछ भूल गया
मैं को मिला कफ़न के जनम व्यर्थ खो दिया
ना किया हरी भजन जनम व्यर्थ खो दिया
काम करे ना हाथ और पेअर
बनाने लगे सब अपने गैर
खैर खबर कोई पूछे ना
सब का हुआ फिर मुझसे बैर
बूढ़ा हुआ बदन बूढ़ा हुआ बदन
बूढ़ा हुआ बदन के जनम व्यर्थ खो दिया
ना किया हरी भजन जनम व्यर्थ खो दिया
ना किया हरी भजन के जनम व्यर्थ खो दिया
हरी से नहीं लगन के जनम व्यर्थ खो दिया

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