काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब |
अर्थ: आप जो काम कल करने की सोच कर टाल रहे है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी जल्द से जल्द करो | हमे इस जीवन पर भरोसा करते हुए कोई भी काम कल पर नहीं टालना चाहिए |
साईं इतना दीजिये,जा में कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥
अर्थ– कबीरदास जी की भगवान से यह प्रार्थना है की – हे भगवान आप हम सभी को इतना अवश्य दे की हम परिवार की जरूरत पूरी करने के साथ द्वार पर आये व्यक्ति की जरूरत को भी पूरा कर सके और दरवाजे पर आया हुआ कोई व्यक्ति भूखा न रह जाए ।
धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥
अर्थ – कबीरदास जी कहते है की हे मन किसी काम के लिए ज्यादा बेचैन होना बंद करो क्योंकि हर काम में एक निश्चित समय लगता है । वे कहते है की जैसे माली सैंकड़ों मटके पानी से कितना भी पौधे सींचले लेकिन पौधे पर फल तो तभी लगता है जब फल आने की ऋतु या समय आता हो ।
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।
अर्थ -कबीरदास जी कहते हैं की अगर आपके सामने आपके गुरु और भगवान दोनों साथ साथ खड़े हो तो आपको सबसे पहले गुरु को प्रणाम करना चाहिए क्योंकि उन्होंने ही भगवान तक पहुंचने का मार्ग दिखया है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ – कबीरदास जी कहते है की केवल बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ने से ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती । अगर कोई व्यक्ति ईमानदारी से प्रेम को समझते हुए प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले तो संसार मे वह सच्चा ज्ञानी बन सकता है ।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ – किसी भी साधु और सज्जन की जाति के बारे मे न पूछ कर उनके ज्ञान को समझना चाहिए क्योकि म्यान के मूल्य से जयदा तलवार मूलयवान होती है ।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।।
अर्थ : कबीरदास जी कहते है की अगर आपका मन सभी के प्रति साफ़ एवं शीतल है तो इस संसार में आपका कोई दुश्मन नहीं हो सकता इसके लिए अगर आप अहंकार एवं अपने ‘मैं ‘को छोड़ दें तो इस दुनियां मे हर कोई आप की सहायता और दया के लिए हमेशा तैयार दिखेगा ।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
अर्थ : कबीरदास जी कहते है की केवल बड़े होने का कोई फयदा नहीं जब तक आप अपने छोटो या जरूरतमंद को कोई आराम न दे पाए । जैसे की खजूर का पेड़ बड़ा तो बहुत है लेकिन वो लेकिन वो राहगीर को न ही छाया दे सकता है और न ही भूखे व्यक्ति को फल ।
तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई|
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ||
अर्थ : शरीर पर भगवे वस्त्र धारण करके अपने आपको जोगी कहना सबसे आसान है लेकिन अगर आप मन से अपने आपको जोगी बना पाए तो वो बहुत बड़ी बात है क्योकि य़दि मन के जोगी बनने से ही आपको सभी सिद्धियाँ बड़ी ही आसानी से प्राप्त हो सकती है
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही
अर्थ :कबीरदास जी कहते है की जब मैं अहंकार में खोया हुआ था तब भगवान् को नहीं देख पता था लेकिन बाद मे ज्ञान का दीपक मेरे अंदर उज्ज्वलित हुआ तब सभी प्रकार का अज्ञान रूपी अन्धकार मिट गया । इसका मतलब अगर आप अहंकार छोड़ कर ज्ञान लेते है तो आप प्रभु को पा सकते है ।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय|
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय||
अर्थ:- कबीरदास जी कहते है की सभी लोग भगवान को केवल दुःख मे याद करते है लेकिन सुख के समय कोई भगवान को कोई याद नहीं करता । अगर सुख में या अच्छे समय मे भगवान को याद किया जाये तो दुःख नहीं देखना पड़ेगा ।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय|
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय||
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय||
अर्थ :कबीरदास जी कहते है की जब मैंने पुरे संसार मे बुरे लोगो और बुराई की खोज की तब मुझे कोई बुराई या बुरा व्यक्ति नहीं मिला लेकिन जब मैंने अपने आप को सही तरह से देखा तो मुझे पता चला की मुझसे बुरा कोई नहीं । इसलिए जो व्यक्ति दूसरे लोगों की गलतियाँ या बुराई ढूँढ़ते हैं वही सबसे बड़ी बुराई होती है इसलिए दुसरो की बुराई मे समय बर्बाद न करके अपने अंदर की बुराई ढूढ़ कर उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए ।
जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय|
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय||
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय||
अर्थ:- कबीर दास जी कहते है कि हम जिस तरह का भोजन करते है वैसा ही हमारा मन हो जाता है और जिस तरह का पानी पीते है वैसी ही हमारी वाणी हो जाती है इसलिए हमेशा अच्छे लोगो की संगति मे रहना चाहिए जिससे आपका मन व् प्रवति हमेशा अच्छी बनी रहे ।
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय|
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय||
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय||
अर्थ:- कबीर दास जी कहते है पैर में आने वाले तिनके की छोटा समझ कर निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकिं अगर वही तिनका आँख में चला जाए तो बहुत पीड़ा देगा वैसे ही की कभी भी किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए क्योकि आपने किसी का भविष्य नहीं देखा है
साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं|
धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं||
अर्थ:- साधू हमेशा करुणा और प्यार का भूखा होता न की धन का । और जो साधू धन का भूखा है वह साधू नहीं हो सकता ।
कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार|
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार||
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार||
अर्थ – कबीरदास जी कहते है की बुरे वचन विष के समान होते है और केवल बुरा परिणाम देते है जबकि अच्छे वचन अमृत के समान होते है जो की सबका भला करते है ।
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